03-04-94  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सन्तुष्टता का आधार - सम्बन्ध, सम्पत्ति और सेहत (तन्दुरूस्ती)

सन्तुष्टता की स्थिति द्वारा परिस्थितियों को परिवर्तन करने की विधि बताने वाले बापदादा अपने सन्तोषी बच्चों प्रति बोले-

आज दिलाराम बाप अपने सदा सन्तुष्ट रहने वाली सन्तुष्ट आत्माओं व सन्तुष्ट मणियों को देख रहे हैं। ये रूहानी मणियों की चमक सारे दरबार को चमका रही है। सन्तोषी आत्मायें स्वयं को भी प्रिय और सर्व को भी प्रिय और बाप को तो प्रिय हैं ही। तो ऐसे हो ना? क्योंकि इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन में अप्राप्ति का नाम ही नहीं है। सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मायें हो। तो जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ सदा सन्तुष्टता स्वत: और स्वाभाविक है ही। नेचरल स्वभाव उसका सन्तोष का है और सन्तुष्टता का स्वरूप व स्वभाव, निजी संस्कार ऐसा श्रेष्ठ है जो असन्तुष्ट आत्मा के भी असन्तुष्टता का वायब्रेशन, वायुमण्डल, सन्तोष वायुम-ण्डल में बदल देता है। इस संगमयुग में विशेष बापदादा की देन सन्तुष्टता है। एक सन्तुष्टता की विशेषता और विशेषताओं को भी सहज अपने समीप लाती है। लेकिन सदा सन्तुष्ट हो। परिस्थिति कितनी भी बदले लेकिन सन्तुष्टता की स्थिति को परिस्थिति बदल नहीं सकती। पर-स्थिति है ही बदलने वाली। लेकिन स्व-सन्तुष्टता की स्थिति सदा प्रगतिशील है। आपके आगे कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति ऐसे ही अनुभव होती है जैसे पपेट (कठपुतली) शो देखते हो ना। होता सब कुछ है लेकिन होता पपेट है। तो कैसी भी परिस्थिति पपेट शो लगता है वा आजकल का जो फैशन है कार्टून शो, अच्छा लगता है ना। होता तो शेर भी है, बिल्ली भी होती है, लेकिन होता क्या है? कार्टून। कहानी पूरी होती है लेकिन है कार्टून की स्टोरी, रीयल नहीं है। कभी भी, कोई भी परिस्थिति आए तो यही समझो एक बेहद के स्क्रीन पर कार्टून शो चल रहा है वा पपेट शो चल रहा है। तो वह देखकर के परेशान होंगे कि मनोरंजन करेंगे? शो देखना तो अच्छा ही है ना। तो यह माया का वा प्रकृति का यह भी एक शो है। जिसको साक्षी स्थिति में सदा सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो। अपनी शान में रहते हुए देखो-सन्तुष्ट मणि हूँ, सन्तोषी आत्मा हूँ। ये है संगम का श्रेष्ठ शान। तो शान में स्थित होना आता है ना कि परेशान होना अच्छा लगता है? सदा सन्तुष्टता की विशेषता को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो।

प्राप्तियों में विशेष सम्बन्ध और सम्पत्ति आवश्यक है। सम्बन्ध में भी अगर एक भी सम्बन्ध अप्राप्त है तो सम्पूर्ण सन्तुष्टता नहीं होगी। तो सम्बन्ध में भी सर्व चाहिये और अविनाशी चाहिये। अगर कोई भी सम्बन्ध विनाशी है तो अप्राप्ति और असन्तुष्टता स्वत: हो जाती है। लेकिन एक ही वर्तमान संगमयुग है जिसमें सर्व अविनाशी सम्बन्ध एक बाप से अनुभव कर सकते हो। सतयुग में भी सम्बन्ध बहुत थोड़े हैं, सर्व नहीं हैं, लेकिन इस समय जिस सम्बन्ध की आकर्षण हो, अनुभूति करना चाहे वो सम्बन्ध परम आत्मा द्वारा अनुभव कर सकते हो। हर एक के जीवन में सम्बन्ध की भी अलग-अलग पसन्दी होती है। किसको बाप का सम्बन्ध इतना अच्छा नहीं लगेगा, फ्रेंड ज्यादा अच्छा लगेगा। लेकिन एक समय पर और एक से सर्व सम्बन्ध प्राप्त हैं? सर्व प्राप्ति है कि कुछ रहा हुआ है? पीछे बैठे हुए क्या समझते हैं? आज नये-नये को आगे बैठने का चांस दिया है। अच्छा, जो इस कल्प में इस बार पहली बार आये हैं वो हाथ उठाओ। भले पधारे। बापदादा भी पदमगुणा स्नेह सम्पन्न वेलकम कर रहे हैं। नये होते भी कल्प-कल्प के अधिकारी हैं, ये तो समझते हो ना? बापदादा सदा कहते हैं-बड़े तो बड़े हैं लेकिन छोटे समान बाप हैं। इसलिये सदा अपने रूहानी बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और नशे में रहो। बेहद का नशा है, हद का नहीं रखना। देखो, कितने श्रेष्ठ अधिकारी हो जो स्वयं बाप ऑलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर अधिकार रख दिया। परमात्म-अधिकारी-इससे बड़ा अधिकार और है ही क्या!जब बीज को अपना बना लिया तो वृक्ष तो समाया हुआ है ही। सर्व सम्बन्धों का भी अविनाशी अधिकार ले लिया और सम्पत्ति में भी अगर सिर्फ स्थूल सम्पत्ति है तो भी सदा सन्तुष्ट नहीं रह सकते। स्थूल सम्पत्ति के साथ अगर सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और श्रेष्ठ सम्पन्न ज्ञान की सम्पत्ति नहीं है तो सन्तुष्टता सदा नहीं रह सकती। लेकिन आप सबके पास यह श्रेष्ठ सम्पत्तियाँ हैं। सम्पत्तिवान हो ना? दुनिया वाले तो सिर्फ स्थूल सम्पत्ति वाले को सम्पत्ति भव का वरदान देते हैं लेकिन आप सबको वरदाता बाप सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान देते हैं। तो सब सम्पत्ति हैं ना कि कोई कम है? फुल है? पीछे वालों के ऊपर सबसे ज्यादा ध्यान है। आगे वालों का ध्यान बाप के तरफ ज्यादा है और बाप का ध्यान पीछे वालों के ऊपर ज्यादा है। जितना ही दूर हैं उतना ही नयनों में समाये हुए हैं।

साकार वतन में तो साकार की बातें होती हैं। देखो, परमधाम में आप सभी आत्मायें कितनी समीप होंगी! सभी साथ होंगे ना और सूक्ष्म वतन में भी इतना बेहद है जो जितना समीप आना चाहे आ सकते हैं। लेकिन बच्चों का स्नेह निराकार और आकार को भी साकार बनाना चाहता है। तो बाप क्या कहते हैं? जी हजूर, जी हाजर। बच्चे तो बाप के भी हजूर हैं, मालिक हैं ना। मालिक को ह जूर कहा जाता है और बालक को भी मालिक कहा जाता है। तो सभी कौन हो? सन्तुष्ट मणियां। सम्बन्ध में भी सन्तुष्ट और सम्पत्ति में भी सन्तुष्ट। सम्बन्ध, सम्पत्ति और तीसरी होती है सेहत, तन्दुरूस्ती। आप सभी तन्दुरूस्त हो ना कि बीमार हो? आत्मा तो तन्दुरूस्त है ना, शरीर की कोई बात ही नहीं। आत्मा सदा शक्तिशाली है। संगम पर श्रेष्ठ सेहत वा तन्दुरूती है आत्मा की तन्दुरूस्ती। इस समय के आत्मा की तन्दुरूस्ती जन्म-जन्म के शरीर की तन्दुरूस्ती भी दिलाती है। लेकिन इस समय थोड़ा-सा प्रकृति अपना रूप दिखाती है। इसमें भी कोई बड़ी बात नहीं। यह भी कार्टून शो है। तो सर्व प्राप्तियाँ हैं ना। सम्बन्ध भी हैं, सम्पत्ति भव भी है, ‘सर्व सम्बन्ध भव’ भी है और ‘सदा तन्दुरूस्त भव’ भी हैं। तीनों वरदान वरदाता बाप से मिले हुए हैं। तो वरदानों को समय पर कार्य में लगाओ। सिर्फ वरदान सुनकर खुश नहीं हो जाओ कि हाँ, मुझे बहुत अच्छा वरदान मिला या सिर्फ नोट करके नहीं रखो लेकिन समय पर वरदान को काम में लगाने से वरदान कायम रहते हैं। अगर वरदानों को समय पर काम में नहीं लगाया तो वह वरदान फल नहीं देता। वरदान तो अविनाशी बाप का है लेकिन वरदान को फलीभूत करना है। बीज तो है लेकिन उससे फल कितना निकालते हो, वह आपके हाथ में है। कोई सिर्फ वरदान के बीज को देखकरके खुश होते रहते हैं-बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, लेकिन फलदायक बनाओ। बार-बार स्मृति का पानी दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो, फिर देखो वरदान सदा फलीभूत होता रहेगा, और वरदानों को भी साथ में लायेगा। वरदानों के फल स्वरूप बन जायेंगे। तो आज के त्रि- वरदान को फलीभूत करना और समय पर जरूर याद रखना। समय पर भूल जाते हैं, पीछे पढ़ते रहते हो कि हाँ, ये वरदान तो था! वरदानों को जितना समय पर कार्य में लगायेंगे उतना वरदान और श्रेष्ठ स्वरूप दिखाता रहेगा। तो सभी को वरदान मिला ना! अच्छा।

अभी जो 5 तरफ से ग्रुप आये हैं वो नम्बरवार हाथ उठाओ।

एशिया - इसमें भारतवासी तथा मधुबनवासी भी हाथ उठाओ। मधुबनवासी तो विशेष हैं। ये बड़ा ग्रुप है। भारत वाले भी चांस लेने में होशियार हैं। तो एशिया निवासियों के प्रति विशेष आज के दिन तीन वरदान तो सभी के हैं ही, लेकिन विशेष एशिया प्रति ‘सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव भव’। शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव-ये विशेष वरदान एशिया निवासियों के प्रति है।

यूरोप - यूरोप में इंगलैण्ड भी आ गया। यूरोप निवासियों के प्रति विशेष वरदान है कि ‘सदा जीरो और हीरो भव’। जीरो का तो पता है ना। तीन जीरो याद रखना, सिर्फ एक नहीं। जीरो और हीरो एक्टर हैं और हीरे समान हैं, डबल हीरो। तो तीन जीरो और डबल हीरो। तो ये वरदान यूरोप निवासियों के प्रति है।

अमेरिका - पूरा अमेरिका हाथ उठाओ। एक्सरसाइज करो और सीधा हाथ उठाओ। कइयों को आदत है छोटा हाथ उठाने की। बापदादा को छोटा हाथ वाला हाफ कास्ट लगता है। फुल हाथ उठाओ।

तो अमेरिका निवासी सर्व आत्माओं के प्रति विशेष यही वरदान है कि ‘सदा माया से इनोसेन्ट और विजय में सेन्ट परसेन्ट और स्थिति में सदा सेन्ट।’ सेन्ट खुशबू वाले भी और सेन्ट अर्थात् महान आत्मा, डबल सेन्ट। तो ‘सदा इनोसेन्ट भी और डबल सेन्ट भव’।

अफ्रीका, मॉरिशियस - आज बापदादा सीधा हाथ उठाने की ड्रिल करा रहे हैं। डॉक्टर्स भी कहते हैं ना ड्रिल करो। सर्व अफिका निवासी बच्चों प्रति विशेष यही वरदान है कि ‘सदा सर्व प्रासपर्टी और सदा हर संकल्प, बोल और कर्म में सहज ऑनेस्टी भव, प्रासपर्टी भव और त्रि-स्वरूप से सहज ऑनेस्टी भव’।

ऑस्ट्रेलिया, न्युजीलैण्ड - ऑस्ट्रेलिया निवासी सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं प्रति विशेष यही वरदान है कि ‘सदा माया से विजयी और साथ-साथ माया जीत, विश्व के राज्य जीत श्रेष्ठ वरदान भव’। साथ-साथ ‘सदा निश्चिन्त और निश्चय निश्चित भव’। ऑस्ट्रेलिया निवासी विशेष बाप के प्रिय हैं। हैं तो सभी प्रिय लेकिन विशेष ऑस्ट्रेलिया निवासी प्रिय क्यों हैं? बाप की विशेष स्नेह की नजर ऑस्ट्रेलिया निवासियों के ऊपर रहती है। क्यों? क्योंकि ऑस्ट्रेलिया निवासियों की धरनी कमाल करने में बहुत अच्छी है लेकिन बाप विशेष धरनी को स्नेह का पानी देते हैं। इसीलिये विशेष स्नेह है। समझा? तो ऑस्ट्रेलिया वाले कमाल बहुत कर सकते हैं। अभी थोड़ी-थोड़ी की है। और ऑस्ट्रेलिया का नाम भी अन्त में लिया है तो अन्त वाले को कुछ एक्स्ट्रा देना चाहिये। तो सभी को वरदान मिला।

मधुबन - मधुबन निवासी विशेष हैं। चाहे वर्तमान समय ज्ञान सरोवर निवासी हैं, चाहे विश्व को सदा हेल्दी बनाने वाले हॉस्पिटल वाले हैं, सिर्फ हेल्दी नहीं, हैप्पी हेल्दी। चाहे मधुबन में चारों ओर घेराव डालने वाले बच्चे हैं। आबू में घेराव डाल रहे हैं ना। तो सर्व मधुबन निवासी विशेष बच्चों प्रति विशेष वरदान है कि ‘सदा मन्सा, वाचा, कर्मणा-तीनों में सेन्ट-परसेन्ट प्रगति भव’।

बाकी जहाँ से भी सभी बच्चे आये हैं भिन्न-भिन्न विदेश के देशों से वा भारत के देश से सभी को विशेष ‘सदा सम्पन्न और सम्पूर्ण भव’। अहमदाबाद वाले भी सेवा बहुत अच्छी करते हैं। मधुबन में भी अथक सेवाधारी हैं तो विशेष अहमदाबाद, दिल्ली और बाम्बे-इन तीनों स्थानों को भी सेवा का बहुत अच्छा चांस मिला हुआ है। सभी स्थान अपने स्नेह-सम्पन्न अथक सेवाधारी बन सेवा कर रहे हैं और करते रहेंगे। सेवा की मुबारक हो।

और चारों ओर के जो दूर बैठे बहुत दिल में समीप हैं, तो चारों ओर के देश-विदेश के सर्व सन्तोषी आत्माओं को, सन्तुष्टमणियों को, सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्माओं को, जिन्होंने भी याद, पत्र, कार्ड आज के दिवस के भी भेजे हैं, तो आज के विशेष दिवस की भी सर्व बच्चों को याद-प्यार पदमगुणा स्वीकार हो। चाहे दूर बैठकर मन में, दिल में मना रहे हैं, चाहे सम्मुख मना रहे हैं, कार्ड वा पत्र सब पहले वतन में पहुँचते हैं। तो सभी के पत्र, कार्ड और शुभ संकल्पों की याद, शुभ भावनाओं की याद के रिटर्न में बापदादा का विशेष याद-प्यार और सर्व बालक सो मालिक बच्चों को नमस्ते। अच्छा।

दादियों से मुलाकात:

सूक्ष्म इशारों की भाषा तो जानते हो ना। जैसे अव्यक्त बाप इशारों की ही भाषा जानते हैं। अव्यक्त वतन में तो नयनों की भाषा और इशारों की भाषा है। तो आप भी जानते हो ना। नयनों की भाषा जानते हो? साकार से सीखे हो ना। मुख की भाषा तो सुनी, अभी है नयनों की भाषा। नयनों की भाषा बड़ी प्यारी है। आवाज से परे तो जाना ही है। फिर भी बाप जी हजूर तो करते ही हैं। अच्छा।

(लास्ट में बापदादा ने हाथ उठाकर सभी को आशीर्वाद दिया और विदाई ली)

कोई भी परिस्थिति आए तो यही समझो एक बेहद के स्क्रीन पर कार्टून शो चल रहा है वा पपेट शो चल रहा है। तो वह देखकर के परेशान नहीं होंगे। माया का वा प्रकृति का यह भी एक शो है। जिसको साक्षी स्थिति में सदा सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो। अपनी शान में रहते हुए देखो-सन्तुष्ट मणि हूँ, सन्तोषी आत्मा हूँ।